जब हक के बदले भीख मिले उम्मीद का दामन फट जाए, जब इज्ज़त गैरत दांव पे हो और बेहतर मुस्तक़बिल सारा, बस “अग्निपथ” में सिमट जाए, जब वादे सारे झूठे निकालें

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